"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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हम होश गँवाने लगे !
लफ्ज़ तभी से हैं शर्माने लगे,
तुम जबसे गज़ल में समाने लगे !
इनकी औकात क्या तेरा बयाँ करें,
तुझे देख खुद गज़ल बनाने लगे !
शायरों की शायरी में इजाफा है
हुआ,
झरोखे पे तुम जबसे आने लगे !
नींद टूटती नहीं ख्वाबों की
खातिर,
दिन में भी ख्याल तेरे सुलाने
लगे !
मजा ले रही देख देख मुझे दुनिया,
तेरे नाम से ही हम होश गँवाने
लगे !
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